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काशीपुर।हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के काशीपुर नगर निगम आगमन पर दिव्यांग बच्चों द्वारा प्रस्तुत रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम ने सभी का मनमोह लिया और खुद मुख्यमंत्री ने भी इन बच्चों की प्रतिभा की सराहना की। उन्होंने दिव्यांग बच्चों के सशक्तिकरण और समावेशी विकास के लिए सरकार की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की। इसके लिए मुख्यमंत्री साधुवाद के पात्र हैं।

दिव्यांग बच्चों के इस कार्यक्रम को प्रदेश के मुखिया के सामने प्रस्तुत कराने का सराहनीय प्रयास रहा डी बाली ग्रुप की मैनेजिंग डायरेक्टर श्रीमती उर्वशी दत्त बाली का, जो समय-समय पर इन बच्चों के बीच जाकर इनका हौसला बढ़ाती है और उनके दुख दर्द को दूर करने में मदद करती है। वें बताती है कि दिव्यांग बच्चों का ऐसा शो करवाने का मुख्य मकसद समाज के सामने उनकी प्रतिभा को उजागर करना और उन्हें प्रोत्साहित करना था क्योंकि इस तरह के कार्यक्रम न केवल इन बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाते हैं बल्कि समाज को यह समझाने में भी मदद करते हैं कि दिव्यांगता कोई बाधा नहीं है, बल्कि सही अवसर और समर्थन मिलने पर यें बच्चे भी अपने कौशल और हुनर को साबित कर सकते हैं।मुख्यमंत्री या अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति से इस तरह के कार्यक्रमों को और अधिक मान्यता मिलती है, जिससे समाज में समावेशी सोच को बढ़ावा मिलता है और समाज व सरकार तक इनकी दिव्यांगता के दर्द का एहसास पहुंचता है।उर्वशी दत्त बाली कहती है कि जरा सोचिए जो बच्चे न बोल सकते है और न सुन सकते है उनका बेबसी भरा दर्द कैसा होता होगा? उन्हें भगवान ने पैदा तो किया मगर प्रकृति ने उनसे बहुत कुछ छीन भी लिया। कई बच्चे हाथ से विकलांग हैं तो कई हाथ और पैर दोनों से। आखिर इन पर क्या बितती होगी? इस कल्पना मात्र से ही समाज में बदलाव की ज़रूरत है। कुछ के परिजन दिव्यांग आश्रम या स्कूलों में अपने दिव्यांग बच्चों की खैर खबर लेने आते हैं मगर अधिकांश ऐसे भी हैं जिन्हें लावारिस छोड़ दिया जाता है और सामाजिक संगठन ही उनका परिवार बनकर रह जाते हैं। जरा सोचिए यह बेचारे जाए तो कहां जाएं? इनमें भी दिमाग है और यह सिखाए जाने पर हमारी जरूरत का सामान भी बनाते हैं। यदि हम इनका बनाया हुआ सामान खरीदें तो इन्हें नया हौसला मिलेगा और यह भी समाज की मुख्य धारा में खड़े नजर आएंगे, जिसके लिए हमें दृष्टिकोण बदलना होगा। इन दिव्यांग बच्चों को सिर्फ सहानुभूति नहीं, बल्कि समान अवसर देने की भी जरूरत है। इन्हे समावेशी शिक्षा की जरूरत है। इनके स्कूलों में विशेष सुविधाएँ होनी चाहिए और इन बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने में हमे मदद करनी चाहिए। इन्हें सरकारी योजनाएँ और सहायता मिले। सरकार की ओर सेअधिक से अधिक सहयोग और अवसर दिए जाने चाहिए ताकि ये बच्चे आत्मनिर्भर बन सकें।

समाज का असली विकास तभी होगा जब दिव्यांग बच्चों को भी समान हक़ और अवसर मिलेंगे, और उन्हें समाज का अभिन्न अंग माना जाएगा। कुछ लोग इन्हें संघर्षऔर हौसले की मिसाल मानते हैं, खासकर वे बच्चे जो अपनी चुनौतियों को पार कर असाधारण उपलब्धियाँ हासिल करते है। कुछ रूढ़िवादी सोच के लोग दिव्यांग बच्चों को मुख्यधारा से अलग रखते हैं, जिससे वे समाज से कटे-कटे महसूस करते हैं जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। इन्हें समावेशी सोच और समावेशी शिक्षा की जरूरत है। आजकल स्कूल, कार्यस्थलऔर सरकारें दिव्यांग बच्चों को समान अवसर देने का प्रयास कर रही हैं, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें। यह अच्छी बात है मगर समाज में भी उनके प्रति बदलाव की ज़रूरत है। दिव्यांग बच्चों को सिर्फ सहानुभूति नहीं, बल्कि समान अवसर देने की जरूरत है। सामान्य स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष विधायें होनी चाहिए तभी इनके अंधेरे जीवन में भी प्रकाश आएगा। यदि हम जन्मदिन या खुशी के अवसरो पर इनके बीच जाकर कार्यक्रम आयोजित करें तो इन बच्चों को भी खुशी का एहसास होगा और समाज के प्रति अपनापन प्रतीत होगा। आइए हम इस पहल को शुरू करें और इन दिव्यांग बच्चों के जीवन में भी खुशी के रंग भरने का प्रयास करें। मुख्यमंत्री के समक्ष सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शानदार प्रस्तुति देने वाले बच्चों में आरुषि जिया यीशु रिशु प्रीति रुचि हर्षिता कंचन उमंग देवेंद्र प्रिंस श्याम सोनू गुलशन दीपक कुणाल यादव अंशी कार्तिक बत्रा आदि शामिल रहे वहीं इन बच्चों का मार्गदर्शन करने में इंदु बालिका शिक्षा समिति की बालिका शिक्षिका अनुप्रिया प्रोबेशन अधिकारी रजनीश रावत वीरेंद्र सिंह रावत बालक अधीक्षक अभिषेक शर्मा आदि शामिल रहे।

संपादक: काशी क्रांति- हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र
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