सुशील रस्तोगी
किच्छा (उधम सिंह नगर, ने दशहरा के अवसर पर कविता लिखी है जोकि अति सुंदर है
एक बार नहीं सौ बार नहीं,
हर बार यही दोहराना तुम,
खत्म करो तुम सारे रावण,
दशहरा तभी मनाना तुम…..
बढ़ाई कदापि ना करूंगा उसकी,
सबसे बड़ी थी हस्ती जिसकी,
गाथा पढ़ो फिर स्वयं को तोलो,
क्या तिनक भर भी हो उसके तुम बोलो,
राम आदर्श थे आदर्श रहेंगे,
लंकेश पापी हैं पापी रहेंगे,
वस्त्र पहने राम बने हो,
गांडीव उठाये आ भिड़ लेना,
रावण पुतला छोड़ो अबकी,
संसद के पापी जला लेना,
गंगा नीर तुम हाथ उठाये,
सौगंध राम की खाना तुम,
खत्म करो तुम सारे रावण,
दशहरा तभी मनाना तुम….
बकौल रावण,
पहचान लो मुझे तुम,
तुम्ही में से एक हूँ मैं,
भले राक्षस जात मेरी पर तुम,
सबसे नेक हूँ मैं……
सो…राम जी निहारो,
पाप पुण्य तुम मन से विचारो,
फिर मन राम राज्य बनाना तुम,
पहले मारो सारे रावण,
दशहरा तभी मनाना तुम


