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संपादकीय
आलोचना
अली अकबर
काशीपुर। 10 फरवरी 2022 समाज में भ्रष्टाचार को लेकर आए दिन लोग आलोचनाएं करते हैं। परंतु समाज में भ्रष्टाचार इस कदर क्यों हैं इसका जिम्मेदार कौन है उस पर कभी कोई बात नहीं करता क्या समाज के उन ठेकेदारों को सोचना नहीं चाहिए कि आखिर इतना भ्रष्टाचार क्यों है। किन कारणों के चलते हैं इसके पीछे के तथ्य क्या है आखिर क्यों नहीं सोचते वह समाज के ठेकेदार जो भ्रष्टाचार को लेकर चर्चा तो करते हैं। परंतु वह अपने आप को क्यों नहीं सुधारते जब खुद ही ठीक नहीं है। तो फिर दूसरों पर आरोप प्रत्यारोप क्यों लगाते हैं। समाज से जुड़े लोग जनप्रतिनिधियों एवं सरकारों को दोष देते हैं। कि सरकार ने भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगाया मगर क्या कभी समाज से जुड़े उन लोगों ने सोचा कि आखिर इसके पीछे के कारण क्या है। महंगाई इतनी क्यों है बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है किसी को इसकी फिक्र नहीं है बस अपना काम बन जाए दूसरों की कोई फिक्र नहीं करता जैसे जनप्रतिनिधि हो गए हैं उस से बढ़कर समाज के लोग और जनता हो गई है। चुनाव नजदीक आते ही समाज से जुड़े लोगों का और जनता का एक सीजन आ जाता है। कितना किस नेता से रुपया बोट दिलाने के नाम पर कमाना है सब हिसाब जोड़ कर चलते हैं।तो वही नेताओं को भी ऐसे ही लोगों की ज्यादा आवश्यकता होती है। और फिर क्या है रुपया फेंक और तमाशा देख विकास थोड़ी ना करना है पैसे के बल पर बस विधायक बनना है। जनता का विकास नहीं करना बल्कि अपना विकास करना और नेताजी 5 वर्षों तक जनता के बीच नहीं जाते क्योंकि वह तो रुपयों के बल पर विधायक बने हैं। इसका जिम्मेदार कौन है इसकी जिम्मेदार जानता नहीं है क्या वह विकास ना करने की असली जिम्मेदार जनता नहीं है क्या। जनता को सोचना नहीं चाहिए क्या आज हम जो रुपए शराब के अलावा अन्य प्रलोभन में आकर अपना अमूल्य वोट ऐसे जनप्रतिनिधि को दे देते हैं जिसे विकास करने से कोई मतलब ही नहीं होता वह सिर्फ अपना विकास करता है। और करें भी क्यों नहीं जनता उससे इतना अधिक खर्च करा देती है। कि वह भी क्या करें जो चुनाव में खर्च कर देता है उसे जनता से ही तो निकालना है। अब वह विकास करें या अपना चुनाव पर खर्च किया रुपया वापस निकाले इस चक्कर में जनता का विकास अवरुद्ध हो जाता है। और लोग आलोचनाएं करते हैं कि विधायक जी ने क्षेत्र का विकास नहीं किया। अलग अलग राजनीतिक दलों के अलग-अलग नेता चुनाव मैदान में चुनाव लड़ रहे होते हैं सभी नेता अलग-अलग तरह के प्रलोभन लोगों से जनता को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। चुनावी दौर में जनता भी कुछ कम नहीं है कुछ शराब के लिए जनप्रतिनिधियों के पीछे हो जाते हैं। तो कुछ रुपयों के लिए तो कुछ ऐसे होते हैं जो अपने निजी स्वार्थ से लगे रहते हैं। तो उन्हीं में कुछ ऐसे होते हैं जो निस्वार्थ भाव के साथ और तन मन धन से चुनाव लड़ा रहे होते हैं। ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम होती है। जबकि जो शराब और रुपयों के लालच में जनप्रतिनिधि के पीछे होते हैं ऐसे लोगों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। क्या कभी आपने कल्पना की होगी कि जो लोग विधायकी का चुनाव लड़ते हैं उनमें कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनके पास धन कम होता है। और वह कर्ज़ लेकर भी चुनाव मैं खर्च कर देते हैं चुनाव जीत जाते हैं तो सब कुछ ठीक हो जाता है। अगर चुनाव मैदान में चार जनप्रतिनिधि चुनाव लड़ रहे हैं तो क्या आपने सोचा है उनमें से जो तीन जनप्रतिनिधि चुनाव हारे हैं उनके ऊपर क्या बीती होगी। आप कल्पना भी नहीं कर सकते चुनाव में हारने वाले जनप्रतिनिधि भी अपना सब कुछ दाव पर लगा देते हैं। जनता उनके बारे में कभी नहीं सोचती उन्हें बस चुनाव नजदीक आते ही नेताओं के घर मुर्गा रुपया और अन्य चीजें जरूर चाहिए अन्यथा नेता जी को वोट नहीं दिया जाएगा।कभी यह नहीं सोचते कि जिस रुपए को वह अपने ऊपर खर्च करा रहे हैं। वह रुपया उन्हीं से वसूला जाएगा यही विकास ना करने का कारण है। इसके लिए जनता को जागरूक होने की आवश्यकता है हम भी आपसे निवेदन और आग्रह करेंगे कि आप अपने अमूल्य वोट का किसी प्रलोभन में आकर उपयोग ना करें। सोच समझकर मतदान करें अपने लिए कैसा जनप्रतिनिधि चुनना है निस्वार्थ भाव से मतदान करें। हमें सोचना होगा आपको सोचना होगा पूरे समाज को सोचना होगा क्या 10 दिन चुनाव के दौरान किसी के घर खाने से या शराब पीने से या उससे रुपया लेने से हमारा भला हो सकता है। हम उस जनप्रतिनिधि के घर 10 दिन में कितने रुपए का खा सकते हैं कितने रुपए की शराब पी सकते हैं कितने रुपए उससे ले सकते हैं क्या आप को कोई खरीदने की हिम्मत रखता है अगर आप नहीं चाहे तो। हमें अपने बच्चों के बारे में सोचते हुए उनके भविष्य के बारे में सोचते हुए इन सारी बुराइयों को छोड़कर अपने लिए एक अच्छे जनप्रतिनिधि का चुनाव करना है। तभी प्रदेश में अच्छी सरकार बन सकती है भ्रष्टाचार मुक्त सरकार बन सकती है। भ्रष्टाचार तब तक होता रहेगा जब तक समाज और समाज से जुड़े लोग खुद के अंदर परिवर्तन नहीं करेंगे। तभी भ्रष्टाचार और महंगाई पर अंकुश लग सकता है।
संपादक: काशी क्रांति- हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र
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